फर्जी विकलांग सर्टिफिकेट पर नौकरी करने वाले सब इंजीनियर की तरह और कितने लोग ?
भोपाल । विकलांग कल्याण को ध्यान में रखकर इनके जीवन सरल करने के लिये देश की सरकारों ने रियायत देते हुए इनके जीवन मूल्यों के संरक्षण हेतु उन्हें सरकारी नौकरियों मे विषेश प्राथमिकता प्रदान करते हुए विशेष आरक्षण का लाभ दिया है । सरकार के इस पवित्र उद्देश्य पर भी शरारती तत्वों द्वारा विकलांगों के हिस्से की इस पात्रता पर भी ग्रहण लगने का काम मध्य प्रदेश में किया गया है इसका ताजा मामला हाल ही में सतना से प्रकाशित महत्वपूर्ण दैनिक समाचार पत्र के माध्यम से प्रकाश में आया है जिससे लोक निर्माण विभाग मैहर उप संभाग में पूर्व में पदस्थ सब इंजीनियर एम के त्रिपाठी विकलांग कोटे में नौकरी कर रहे हैं इसे प्राप्त दस्तावेजों के आधार पर समाचार पत्र प्रकाशित किया है । इस रहस्य से पर्दा उठाया है अगर इस समाचार पर भरोसा किया जाए और इसकी जांचों उपरांत सत्यता सामने आए तो यह निश्चित करने मे की ऐसे और कितने लोग मध्य प्रदेश में विकलांगों के हिस्से की पात्रता पर ग्रहण लग रहे हैं यह जानना आवश्यक होगा समाचार पत्र में वर्णित समाचार अनुसार
दस्तावेजों से मिली जानकारी के अनुसार 11.01.1996 को एम के त्रिपाठी ने देवास, उज्जैन से बधिर यानि कम सुनाई देने का स्टिंफिकेट बनवाया गया। जिसके आधार पर विशेष विकलांग भरती के तहत इनकी ज्वाईनिंग हुई। लोक निर्माण विभाग से जुड़े सूत्र बताते हैं कि एम के त्रिपाठी सामान्य रूप से सुनाई देता है। हालांकि स्थिति की प्रमाणिकता के लिए मेडिकल जांच की आवश्यकता है ।
जो यह निश्चित करें कि वह इस पात्रता में नहीं आते
इसके बाद एम के त्रिपाठी का ट्रांसफर देवास से रीवा के लिए हुआ। कई वर्षो तक रीवा में रहने के बाद 2021 में एम के त्रिपाठी मैहर उप संभाग में बतौर एसडीओ के प्रभार पर पदस्थ हो गये। मिली जानकारी के अनुसार विगत दिनों एम के त्रिपाठी को मैहर प्रभारी के पद से हटाया गया और उनके जगह पर आर के शुक्ला को मैहर का प्रभारी बनाया गया। लेकिन एम के त्रिपाठी द्वारा कोर्ट से स्टे ले लिया गया। वर्तमान समय में कोर्ट में मामला चल रहा है।
पूरे मामले तो समझने के बाद यह निश्चित करना प्रदेश सरकार का काम होना चाहिए
कि जो घटनाक्रम सामने आ रहा है इसमें कितनी सच्चाई है वस्तु स्थिति जांच करने के बाद अगर यह घटना सत्य है तो पूरे प्रदेश में और कितने ऐसे और लोग है जो सरकार की आंखो मे धूल झोंक कर मजे से विकलांगता का लाभ ले कर इनके हिस्से के लाभो से विकलांगो को सरकारी नौकरियों के लाभ से वचिंत कर रहे है ।
अगर जांच हो तो सत्य आयेगा सामने
सामान्यत: व्यक्ति बहरे या कम सुनने का दिव्यांग प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिए प्रशिक्षित होकर आता है। आमतौर पर दिव्यांगता की जांच ऑडियोमेट्री टेस्ट से ही की जाती है। एक फ्रिक्वेंसी पर उसके कान में आवाज छोड़ी जाती है। यदि वह सुनाई देने से मना कर देता है तो उसे बहरे या कम सुनने की श्रेणी का दिव्यांग मानकर बोर्ड द्वारा प्रमाण पत्र जारी कर दिया जाता था। बहुत विशेष या फिर शिकवे-शिकायत होने की स्थिति में ही बैरा टेस्टिंग की जाती है, जिसके सामने झूठ नहीं चलता। पर बैरा टेस्टिंग की भी व्यवस्था अब गिनेचुने सरकारी अस्पतालों में आ गई है। लेकिन अभ्यर्थियों ने फर्जी रिपोर्ट या रिपोर्ट में छेड़छाड़ कर बोर्ड के समक्ष प्रस्तुत कर दिव्यांग प्रमाण पत्र प्राप्त कर सकते हैं इसे ध्यान देने की भी आवश्यकता है ।
अब देखना होगा कि सरकार अपनी आंखें कब तक खोलती है अथवा इसी तरह विकलांग के हितों के विरुद्ध इन शरारतीयो को संरक्षण देती है ?